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ब्राह्मणों की गलती ही क्या है?

http://sonawani.blogspot.com/
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मैं महाराष्ट्रा में पिछले कई सालों से बहुजनवाद के हित में लिख रहा हूं. मक्सद तो यही रहा हैं कि मै इतिहास के जरीये हर जाती घटक को जगा पाऊं. महाराष्ट्रा में बहुजनवादी कई संघटनाएं आज कार्यरत हैं. मग मैंने पाया हैं कि लगभग हर संघटन सिर्फ ब्राह्मणोंको गालीप्रदान करणे में ही व्यस्त रहती हैं. विगत के हर पातक को, अन्याय को उन्हे ही जिम्मेदार मान कर जिस ढंग से अश्लाघ्य, हीण दर्जे की भाषा में लताडा जा रहा हैं वह देख कर लगता हैं कि फुले-आंबेडकर का नाम लेनेवाले अपनी सतह से नीचे गिर रहे हैं. हालांकि जितनी सच्चाई ब्राह्मणों के गलत होने बाबत हैं उतनीही सच्चाई बहुजनों के भी गलत होने में हैं. पुरातन समय से धर्मसत्ता और राजसत्ता हमेशा साथ साथ चलती देखी गई हैं. अगर ब्राह्मणोंने अपने हीत में कोई भी धर्म-नियम बनाया होता था तो उसे वास्तव में अमल में लाना राजाओं के बगैर असंभव था. दुसरी बात यह हैं कि जाती व्यवस्था के कई फायदे हुआ करते थे जिन्हे छोडना समाज को मंजुर नहीं था.

आज भी सारे बहुजनवादी जाते अंत की बात तो जोरोशोरों से करते हैं परंतु कोई भी अपनी जाती को छोडने की बात करता दिखाई नही देता. जाती सबको चाहिये. जाती संघर्ष सबको चाहियें. जाती के लाभ सबको चाहियें. हर जाती के लोग अपना इतिहास ढुंढते हुए उसे किसी ना किसी ब्राह्मीण या क्षत्रीय कुलतक भिडाने की कोशीश में लगे हुए दीख पडते हैं. कोई अपनी जाती को रजपुत मुल की मानती हैं तो कोई यदू या इक्ष्वाकु कुल की. कोई अपनी परंपरा पांडवों तक ले जाते हैं तो कई कौरवों तक. जाती श्रेष्ठता का अहंकार इतना बढा हुआ हैं कि लगभग हर जाती अपने आपको एक भुले हुऎ जमानेके राज्यकर्ता मानते हैं या किसी ऋषी से शुरु हुआ वंश. जाती कोई भी हो.

क्या यह सब ब्राह्मणों ने किया हैं? यदि किया हैं और उसे नकारने की नई परंपरा हमने बहुजनवाद के जरिये शुरु की हुइ हैं तो क्या हम यद्यपी मनुवाद को त्याग पाये हैं? बाबासाहेब आंबेडकरने मनुस्मृती जलाई थी, वह क्यों?

आज ब्राह्मण नहीं, हम बहुजनवादी मनुस्मृती के कट्टर समर्थक बन चुके हैं. हम जातीयता नष्ट नहीं कर सकते. मनूस्म्रुती को ब्राह्मणों ने कबका छोड दिया. मनुस्मृती के अनुसार जो कर्म ब्राह्मणों को निषिद्ध थे वे करना उन्होने कबका शुरु किया. उदाहरण के तौर पर देखे तो ब्राह्मण व्यापार नहीं कर सकता…वह दुध भी बेचें तो तीसरे दिन शूद्र बन जाता हैं. शस्त्र हात मे उठाना तो दूर, उन्हे देखना भी ब्राह्मणों को मना हैं. नौकरी करना तो दूर की बात. ऐसे में हम देख सकते हैं कि महाभारत काल से ब्राह्मणों ने स्म्रूतियों के नीयमों को पैरोतले कुचल दिया. मगर उन्हे सर पर उठाकर घुमनेवाले बेवकुफ हम ही थे.

बहुजनों का हित सिर्फ ब्राह्मणों को गाली देकर होगा ऐसे माननेवाले बहुजनीय मुर्खता के नंदनवन विचर रहे हैं. वे वास्तव में कभी भी बहुजनों का हित नहीं कर सकते.

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